Saturday 4 October 2014

बातें





कुछ बातें हैं
तूफानों सी .. बेख़ौफ़ चला करती हैं

कुछ बातें हैं
बिन बेड़ियों ..के भी रुका करती हैं

कुछ बातें हैं
जुबान तक ... आते ही थका करती हैं

कुछ बातें हैं
सागर सी ..बेपरवाह बहा करती हैं

कुछ बातें हैं
मोती बनकर .. आँखों मे बस जाती हैं

कुछ बातें हैं
अंगारों की बौछार करे ही जाती हैं

कुछ बातें हैं
आईनों सी ..साफ़ होती हैं

कुछ बातें हैं
विष भरा ..एक नाग होती हैं

कुछ बातें हैं
शिथिल लहू मे ....वेग लाती हैं

कुछ बातें हैं
जलते वन मे ...बारिश कर पाती हैं

कुछ बातें हैं
दर्द बिना बस मरहम लगाती हैं

कुछ बातें हैं
छू छू कर बस ...ज़ख्म बढाती हैं

बातों ही बातों मे मैंने
ताकत बातों की है जानी
सही कहीं या गलत कहीं
लिखती हैं सब एक अलग कहानी

उम्मीदों की चिंगारी से .. हमे तपाती हैं
निष्क्रियता की चादर खींच ....
ये हमे उठाती हैं

फिर बातें...कमजोर हैं कैसे
जब हमे चलाती हैं
फिर बातें...कमजोर हैं कैसे
जब हमे बनाती हैं |

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