क्यों हो तुम..ऐसे
कि... तुमको सब डराने हें लगे
कुछ करो ...........उससे है पहले
सब बताने हैं लगे
ये ना कर ...........वैसा ही कर
ना हो अगर ..........ना हो मगर
यह जो करले ........ हो भला
जादा न अपना ...सर चला
बातों .......की रूह महसूस कि
तोह राज़ था... ये अब खुला
मन को .........इतने भागों में
बांटा है तूने ......क्युं भला
हर भाग मे एक राज़ को
पाला है तूने ......क्युं भला
एक राज़ वोह .....महफूज़ हो
सौ राज़ तूने .......गड लिए
स्वंतंत्र मन को बेडियों में
खुद जकड़ तुम चल दिये ....
बेख़ौफ़ तो था........... मन यह तेरा
राज़ सब महफूज़ हैं......
पर क्या पता .........इस बाँवरे को
हमराज़ .............तूने रख लिये ...........॥