Thursday 12 September 2013

क्यों हो तुम..ऐसे

  


क्यों हो तुम..ऐसे
कि... तुमको सब डराने हें लगे 
कुछ करो ...........उससे है पहले 
सब बताने हैं लगे 
ये ना कर ...........वैसा ही कर 
ना हो अगर ..........ना हो मगर 
यह जो करले ........ हो भला 
जादा न अपना ...सर चला  

बातों .......की रूह महसूस कि 
तोह राज़ था... ये अब खुला  

मन को .........इतने भागों में 
बांटा है तूने ......क्युं भला 
हर भाग मे एक राज़ को 
पाला है तूने ......क्युं भला 
एक राज़ वोह .....महफूज़ हो 
सौ राज़ तूने .......गड लिए 
स्वंतंत्र मन को बेडियों में 
खुद जकड़ तुम चल दिये ....

बेख़ौफ़ तो था........... मन यह तेरा 
राज़ सब महफूज़ हैं...... 
पर क्या पता .........इस बाँवरे को 
हमराज़ .............तूने रख लिये ...........॥


Tuesday 2 April 2013

बहता चलूँ मै .....उस हवा सा ...



बहता चलूँ मै ......उस हवा सा 
जो ...कहीं..... अनजान थी .......
भिन्न भिन्न  लोगों से ....... मिलकर 
कितनो को ......  ......पहचानती 

फिर भी .......एक आशा है 
मन कि...... पिपासा है ......
खींच लूँ अब .......उस हवा मे ....
जो निहित ......सरलता है ....

सोचता  हूँ .........चेहरों को 
बस ..........एक सुराही मान लूँ 
एक से प्रतीत हों सब  ....
भीतर से मै ......अनजान हूँ 

प्यासा हूँ जब .......पानी वोह दें 
या रेत से भरे रहें ....
उलाहना ....अपेक्षा ...प्रतिशोध से आज़ाद हूँ
विस्मय न हो मुझको कहीं
...........  निष्पक्षता से साथ दूँ 

बस इस हवा की भांति ही .........
एहसास दूँ ..........बहता चलूँ
बस इस हवा की भांति ही .........
एहसास दूँ ..........बहता चलूँ  ।।।

Sunday 13 January 2013

" नियंत्रण रेखा " ---LOC




बस रेखा न समझो तुम इसे 
जो पार करके आ गए 
शेरों कि इस कतार पर 
तुम वार करते जा रहे 

बूढ़ा  नहीं...... भूखा नहीं 
सोया नहीं है... येह अभी 
फिर गीदड़ों की भाँति ही 
तुम क्यूँ उसे उक्सा रहे 

जो उठ खड़ा ....वोह चल दिया 
भागे कहाँ फिर जाओगे 
पहले से है.... वीरान बस्ती 
और.... आग मे झुलसाओगे 

हर वक़्त विस्फ़ोटों की ही 
आवाज़ मे  तुम सो रहे 
एक टुकड़ा तो संभला नहीं 
कश्मीर को क्यूँ रो रहे 
कश्मीर को क्यूँ रो रहे ।।