बस रेखा न समझो तुम इसे
जो पार करके आ गए
शेरों कि इस कतार पर
तुम वार करते जा रहे
बूढ़ा नहीं...... भूखा नहीं
सोया नहीं है... येह अभी
फिर गीदड़ों की भाँति ही
तुम क्यूँ उसे उक्सा रहे
जो उठ खड़ा ....वोह चल दिया
भागे कहाँ फिर जाओगे
पहले से है.... वीरान बस्ती
और.... आग मे झुलसाओगे
हर वक़्त विस्फ़ोटों की ही
आवाज़ मे तुम सो रहे
एक टुकड़ा तो संभला नहीं
कश्मीर को क्यूँ रो रहे
कश्मीर को क्यूँ रो रहे ।।