एक चीटी भी सिखाती .....
क्या पता कब किसकी बातें दिल को फिर छूने लगे
क्या पता ये होठ तेरे........ फिर से हसना सीख लें
मैंने एक कोशिश ही की थी...... वोह मुस्कुरा कर फिर चलें
बीते सारे गम को पीछे छोड़कर आगे बड़े
हर ख़ुशी जीते हो ऐसे ........वक़्त भी तब कम लगे
गम ही क्यूँ फिर वक़्त के रहमों-करम पर रख चले
जन्म एक चीटी का पाते ......वक़्त क्या है जान जाते
इतनी छोटी जिन्दगी मे .......दुःख को फिर कब तक बचाते
वोह उस चीटी की लगन है......... श्रम मे वोह इतनी मगन है
एक दाना इतना भारी सर पर रखकर क्यूँ है भागी
रास्ता लम्बा है इतना ........ जान का जोखम है कितना
होंगे कितने पैर ऊपर........ सहनी होंगी कितनी ठोकर
इतने लम्बे रास्ते मे कब तक वोह चल पाएगी
एक समय दाने को छोड़ .......वोह कुचल ही जाएगी
मुस्कुराती खिलखिलाती....... चीटी फिर हमको बताती
खुश हूँ मै दाने को पाकर .......इतने दूर अब इसको लाकर
और भी हैं मेरे साथी .......मेहनत करके वोह भी खातें
मुझसे छूटे इस एक दाने ......को वोह लेकर जाएँगी
इस बहाने कुछ समय ........इस रास्ते को न आएँगी
उस समय संतोष होगा .....मन यह फिर से खुश तोह होगा
वक़्त मेरा कम हुआ...... जाने का मुझको गम हुआ
यह जिन्दगी आधी ही जी..... पर जो बची वोह बाँट दी
जिस ख़ुशी से महरूम थी ......अब वोह ख़ुशी उनको मिली
वोह ख़ुशी उनको मिली ।।